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वो पागल सा एक लड़का ……..

kahi ankahi
kahi ankahi
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वो पागल सा एक लड़का जो देख के मुझको हँसता था |
बाहर से मुझे नफरत थी पर दिल में मेरे बसता था ||
दर्द छुपाकर जीना उसकी एक पुरानी आदत थी
अन्दर अन्दर रोता था बाहर बाहर हँसता था ||
कैसे पूंछू , किससे पूंछूं क्यों नहीं देता अब वो दिखाई
… रोज़ गुज़रता था वो इधर से उसका ये रस्ता था ||
क्यों ठुकराया मांग के उसको , सोच के अब पछताती हूँ
दिल के बदले दिल माँगा था , सौदा कितना सस्ता था ||

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