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जगजीत सिंह : जिन्होंने ग़ज़ल का श्रंगार किया

kahi ankahi
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कभी वो वक़्त था कि ग़ज़ल को केवल पढने की ही चीज़ माना जाता था लेकिन मेहंदी हसन ने उसे अपनी आवाज़ देकर सुनने और गाने लायक बनाया | फिर ग़ुलाम अली साहब ने उसे और निखारा | ये दोनो पाकिस्तान के थे या विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए | हिंदुस्तान में जैसे ग़ज़ल गाने वालों का अकाल सा पड़ गया , उसी दौर में एक नवयुवक राजस्थान के सीमावर्ती इलाके से मुंबई आया और ग़ज़ल गायकी को सुर देने लगा | उसका सुर ऐसा चला कि वो हिंदुस्तान की ग़ज़ल गायकी के आसमान पर सूर्य की तरह न केवल चमका बल्कि ग़ज़ल को उस ऊंचाई तक लेकर गया जहाँ से उसे उतार पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा | उस सूर्य को जगजीत सिंह कहते हैं | वो ग़ज़ल का सूर्य कल यानि १० अक्टूबर को सदा के लिए अस्त हो गया | यूँ हिंदुस्तान या पाकिस्तान में ग़ज़ल के कहने और सुनने वाले कई लोग हैं लेकिन जगजीत जी जैसा होना या उनके जैसा बन पाना मुमकिन नहीं | जगजीत सिंह जी ने जिस ग़ज़ल को स्वर दिया वो स्वयं ही सुनने लायक हो गयी अन्यथा बहुत सी ऐसी ग़ज़ल थीं जिन्हें गाना बड़ा कठिन था मगर जगजीत सिंह जी ने उन्हें अपनी आवाज़ देकर उनका श्रृंगार किया और सबके सुनने के लायक बनाया | उन्हें संगीत से सजी स्रधांजलि  |

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