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मज़हब की दीवारें तोडती छठ पूजा

kahi ankahi
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भगवान सूर्य की उपासना का व्रत छठ अब सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन रहा है | भारत के बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूरे नियम और कायदे से मनाया जाने वाला छठ पूजा न केवल धर्मं की दीवारें तोड़ रहा है बल्कि देश की सीमाओं से बाहर जाकर अमेरिका और ब्रिटेन में भी अपना असर दिखा रहा है | छठ पूजा के दिन आस्था और श्रधा के साथ व्रत रखते हैं | बिहार में सूर्य उपासना की प्राचीन परंपरा रही है , यही कारण है की वहाँ दर्जनों सूर्य मंदिर हैं |
बिहार में गंगा क्षेत्र से सूर्य षष्ठी व्रत प्रारंभ हुआ था | प्रथ्वी की तमाम सभ्यताओं में विभिन्न नामों से सूर्य की उपासना की जाती रही है , लेकिन इस पूजा में ही डूबते हुए सूर्य का सम्मान करते हुए उसे अर्घ्य दिया जाता है | ये विचार इस पूजा को औरों से विशिष्ट बनता है |
परंपरा के अनुसार अस्ताचल सूर्य को पहले और उदय होते सूर्य को बाद में अर्घ्य दिया जाता है | अब तो मुस्लिम भी छठ व्रत को सूर्य को अर्घ्य देने लगे हैं | कहते है कि विश्वास और आस्था पर मज़हब का कोई जोर नहीं चलता | पटना के कमला नेहरु नगर में रहने वाली गुडिया खातून पिछले छः सालों से छठ का व्रत रख कर सूर्य की उपासना कर रही है | ये उनका अपना विश्वास है कि सूर्य की उपासना करने से उनके पति के सफ़ेद दाग की बीमारी ठीक हुई है | फिर सिर्फ गुडिया ही क्यों ? पटना की ही हसन जादो बेगम , वैशाली की नजमा , मुजफ्फरपुर की मल्लिका , सहरसा की फातिमा ………..| कितने कितने नाम हो सकते हैं | पूरे बिहार में करीब छह हज़ार मुस्लिम महिलाएं पूरे रीति रिवाज़ और नियम कानूनों के मुताबिक छठ के व्रत को मना रही हैं | ये ही इस सम्रद्ध एवं सुसंस्कृत भारतीय संस्कृति का अहम् पक्ष बन जाता है जहाँ हिन्दू रोज़े रखता है और मुस्लिम दीपावली और छठ पूजा मनाता है |

छठ पर्व के विषय में “देवी भगवत्पुरण” के अनुसार राजा प्रियव्रत स्वायुभुष मुनि के पुत्र थे | जिनके कोई संतान नहीं थी, बहुत समय के पश्चात एक पुत्र हुआ वो भी मृत ! राजा शिशु के शव को लेकर शमशान पहुंचे और उसे ह्रदय से लगाकर विलाप करने लगे | तभी देवी ने उन्हें दर्शन दिया और कहा – राजन, मैं ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना हूँ | मेरे पिता ने मेरा विवाह गौरी पुत्र कार्तिकेय से किया है | मूल प्रकृति से उत्पन्न होने के कारण मैं “षष्ठी” कहलाती हूँ | ये कहते हुए उन्होंने शिशु को पुनर्जीवित कर दिया और अंतर्ध्यान हो गयीं | यह घटना शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन की है , इसीलिए इस दिन से षष्ठी देवी की पूजा होने लगी | इसी लिए इस पर्व को छठी मैया के नाम से भी जाना जाता है |

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