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बहुत मुश्किल है ये डगर (मतदान की प्रक्रिया में अन्ना फैक्टर कितना प्रभावी सिद्ध हो सकता है?)

kahi ankahi
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अपनी बात शुरू करने से पहले एक शे’र कहना चाहता हूँ !

बस्ती-बस्ती का सन्नाटा बोलेगा
जब गरीब का आटा बोलेगा ||


चोरी , भ्रष्टाचार सब देशों में थोडा या ज्यादा सब जगह है ! लेकिन भारत में इसका घिनोना रूप दिखाई पड़ता है | पहले तो भारत में भ्रष्टाचार या सरकारी चोरी करने वाले बड़े बड़े लोग पकडे ही नहीं जाते और अगर कैसे भी पकड़ में आते हैं तो पूरा का पूरा सरकारी तंत्र उन्हें बचने में लग जाता है | आज तक भारत में किसी प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री को जेल जाते हुए सुना है ? हाँ ! कुछ पूर्व मुखमंत्री या मंत्री जरुर जेल के दर्शन कर आये हैं लेकिन क्या अदालतें उनका कुछ उखाड़ पाएं ? इसी सब से व्यथित होकर जय प्रकाश जी अपना आन्दोलन शुरू किया था और 2011 में एक दूसरा आन्दोलन शुरू हुआ था !

अप्रैल 2011 का दिन , स्थान दिल्ली का जंतर मंतर ! महात्मा गाँधी का लबादा ओढ़े एक व्यक्ति अपनी टीम के खिलाडियों के साथ , भारत सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बैटिंग करने के लिए उतरा था | उस व्यक्ति को हालाँकि भारत सरकार से उसके पिछले कार्यों के इनाम स्वरुप पदम् भूषण जैसी उपाधि भी मिल चुकी थी , लेकिन इस सबके बावजूद वो उत्तर भारत में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं था | उस व्यक्ति ने भारतीय सेना में नौकरी भी की थी और आजीवन कुंवारा रहा , ना जाने क्यूँ ? देश सेवा की खातिर या कोई और कारण ! उसकी टीम में एक से एक धुरंधर और पढ़े लिखे लोग भी थे | विचार भी अच्छा था , नीयत भी भली थी भारत को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक जुट करने की | आज़ादी की इस दूसरी लड़ाई में मेरे जैसे कई लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया इस वज़ह से क्यूंकि हर कोई इस भ्रष्टाचार के राक्षस से दुखी था और हर कोई इससे छुटकारा पाना चाहता था ! इन्होने भी सही जगह पर , लोगों की दुखती रग पर हाथ धर दिया तो ये दुःख और छलक आया और लोग अपना सब कुछ छोड़ छाड़ कर इस बन्दे के पीछे हो लिए | ये बंदा था किशन जी हजारे , ७४ वर्षीय अन्ना हजारे !

अप्रैल के बाद अगस्त 2011 में , रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ जो गुस्सा देखने को मिला उससे सरकार को लगा कि इस से पार पाना आसान नहीं होगा और आश्वासनों के सहारे आन्दोलन को ख़त्म करवा दिया !

इस दौरान हर तरह के मीडिया में , चाहे वो टेलेविज़न चैनेल हो या अख़बार , अन्ना और उनकी टीम के सदस्यों के हर विषय पर राय और मशविरा आने लगा | मतलब या तो टीम अन्ना को टी . वी . पर अपना चेहरा दिखाने की ललक लग गई या फिर मीडिया वालों ने उनका दोहन शुरू कर दिया ! जो भी हो लेकिन अति हो गई ! और इस अति में ऐसा लगने लगा कि अन्ना की टीम अपने असली मकसद से भटक कर कहीं राजनीति के मोड़ पर चल पड़ी है | इस दरमियाँ अन्ना की टीम पर आरोप भी खूब लगे , वो गलत थे या सही ये अलग बात है मगर एक झूठ को अगर सौ बार दोहराया जाता है तो वो सच सा लगने लगता है | इस सबका परिणाम ये हुआ कि लोगों को लगने लगा कि हो ना हो ये लोग भी अपनी जगह राजनीति के मैदान में देखना चाहते हैं भले ही अन्ना या उनकी टीम का ऐसी कोई मंशा ना रही हो !

हरियाणा के हिसार में अन्ना की टीम ने कॉंग्रेस के प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार करके उसको हराने में मदद की तो उनका उत्साह प्रबल हो गया और आनन् फानन में मुंबई में फिर से आन्दोलन करने की जिद ठान ली ! क्या परिणाम हुआ , आप जानते हैं ! अन्ना की बीमारी के बहाने अपनी बेईज्ज़ती को बचाया और फिर एलान हुआ कि हम उत्तर प्रदेश के चुनावों सहित अन्य प्रदेशों में लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद करेंगे !

खींच कर आकाश धरती पर झुका दो साथियों,
चीर सीना पर्वतों का गंगा बहा दो साथियों;
कांप उठे दश दिशायें एक ही हुंकार से,
भींच कर प्राणों को रणसिंघा बजा दो साथियों।


अब उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव निपट चुके हैं , उत्तर प्रदेश का महासमर भी बस शुरू होने को ही है | जिस वक़्त सारी पार्टियाँ अपना पूरा दम चुनाव प्रचार में लगा रही हैं वहीँ अन्ना और उनकी टीम भले ही मैदान में डटे हुए हों मगर कोई इस बात का जिक्र तक नहीं करता ! जो अन्ना और उनकी टीम मीडिया और समाचार पत्रों के मुख्य समाचार हुआ करते थे उनकी खबर अगर तीसरे पेज पर भी मिल जाये तो बड़ी बात है | मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या अन्ना को अभी बीमार पड़ना था ? कोई कह सकता है कि वो वृद्ध हैं बीमार पड़ सकते हैं , बिलकुल ! लेकिन जब वो बीमार थे तो क्या जल्दी थी मुंबई का ड्रामा करने की ? क्या इंतज़ार नहीं किया जा सकता था ? अब जब अन्ना और उनकी टीम की सबसे ज्यादा जरुरत है तब वो नदारद हैं ! हालाँकि मुझे लगता है कि अगर अन्ना भी उत्तर प्रदेश में होते तो भी बहुत ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं था | अरविन्द केजरीवाल पता नहीं कहाँ गायब हैं ? अन्ना अपना इलाज करा रहे हैं तो फिर टीम में बचता ही कौन है ? किरण बेदी , कुमार विश्वास कितना असर डाल पाएंगे ये एक आम मतदाता पर ? माफ़ कीजिये आम नहीं खास मतदाता पर ! खास इसलिए क्यूंकि उत्तर प्रदेश का बच्चा तक पैदा होते ही राजनीति सीख जाता है तो बड़ा होकर क्या वो इन लोगों की बात सुनकर अपनी जाति के बजैय देश हित को महत्व देगा ?

आंसुओं की यह डुगडुगी नाच रहे सब लोग
कोई रोटी मांगता कहीं अपच का रोग ||


एकदम से ये कह देना कि अन्ना और उनकी टीम बिलकुल फ़ैल हो गई है , सही नहीं होगा | बल्कि ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि इस देश में हमेशा राजनीति ही जीतती आई है और एक बार फिर राजनीति ने अन्ना और उनके विचारों को किनारे लगा दिया है ! ना अन्ना गलत थे , ना उनकी टीम बहुत गलत थी बल्कि इस देश की राजनीति और राजनेताओं ने मिलकर , राजनीतिक रूप से अनपढ़ अन्ना और उनकी टीम को बेवकूफ बना दिया !

भेद-भाव को दूर भगाकर समरसता फैलानी है,
भाव ये जन-जन के मन में तुम जगा दो साथियों;
तोड़ कर इस जाति, भाषा, धर्म की ज़ंजीर को,
मानवता को धर्म अपना तुम बना दो साथियों।


और ये कोई बहुत अच्छा सन्देश नहीं है ! क्योंकि अन्ना और उनकी टीम ने उस देश के लोगों को जगाने का काम किया था जो भले ही रोटी ना मिले लेकिन जाति की बात आएगी तो अपनी जाति के अपराधी को वोट जरूर देने जायेंगे ! वोट देना अच्छी बात है किन्तु बिना सोच और समझ के वोट देना उसका दुरूपयोग ही होगा | लेकिन अन्ना और उनकी टीम की आवाज़ , सरकार और अन्य दलों के गलाफाड़ भोम्पुओं के आगे कमज़ोर होकर रह गई ! कहाँ पूरी की पूरी राजनीतिक बिरादरी और छटे हुए गुंडे , मवाली और कहाँ दो चार आम शहरी और नौकरीपेशा लोग ? वो लोग जो ना जाति की बात करते हैं ना धर्म की बात करते हैं ! ना जिनके थैले में वायदों की पोटली है ना जिनके हाथों में आश्वासनों की छड़ी ! ना वो लैपटॉप देने की बात करते हैं , ना बलात्कार के बाद मुआवजा देने की बात करते हैं फिर कोई उनके पीछे क्यों आने लगा ? किसी को , बल्कि उसको जिसने जाति के अलावा कुछ जाना ही ना हो , उसे अपनी बात कहना और अपने पीछे चलने को आकर्षित करना बड़ा मुश्किल होता है ! ये काम उनको ही अच्छा लगता है जिन्हें इस काम में महारत हासिल है |

मैदान में गर डट पडो, रण छोड़ बैरी भाग लें,
तुम अडिग हो ये हिमालय को दिखा दो साथियों;
डरना नहीं फितरत तुम्हारी और ना ही कांपना,
डर को भी अपने नाम से डरना सिखा दो साथियों।


जिस प्रदेश की जनता ने चुनावों के दौरान जातिवाद का हल्ला सुना हो , जिस प्रदेश की जनता ने चुनावों के दौरान हिंसा का नंगा नाच देखा हो , उस प्रदेश की जनता को अन्ना फेक्टर क्या है ये भी शायद ही मालूम हो ? जिस प्रदेश में १०० में से ४० लोग भूखे सोने को विवश हों , वहाँ भ्रष्टाचार क्या मायने रखेगा ?

कई यहाँ प्यास पी रहे हैं , कई यहाँ भूख खा रहे हैं
हमारे नेता ये कह रहे हैं कि दूध भी है और अनाज भी है ||


भले ही अन्ना और उनकी टीम पूरे जोर लगा ले लेकिन वो अपने देश हित और समाज हित के उसूलों को उत्तर प्रदेश में तब तक लागू नहीं कर पायेगी जब तक कि इस प्रदेश का मतदाता खुद जागरूक नहीं होगा | ये इस देश और प्रदेश की विडम्बना ही है कि इस काम में , इस महान कार्य में हम बिहार से भी पीछे हो गए हैं | अफ़सोस , जिस धरती पर राम और कृष्ण पैदा हुए , जिस धरती पर भगवान बुध्ह ने जन्म लिया , जिस धरती को नेहरु ने अपनी कर्मस्थली बनाया अब वही धरती गुंडों और मवालियों को सुनने जाती है अन्ना के लोगों और उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहती !

मन में भी झांक लो गरीबों के
कोई कुचली हुई उमंग ना हो ||

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