रात सुहानी …..झील किनारा
रात सुहानी झील किनारा ,पानी में दो पीले पाँव |
चाँद ख़ुशी से चूम रहा है गोरी के चमकीले पाँव ||
सागर तट पर प्रिय से मिलकर जाने वाली सुन
खोल न दें भेदी बनकर , तेरा भेद कहीं ये गीले पाँव ||
तेरे आने की आहट सुनकर ठहर गया है दरिया का पानी
तू कल फिर आएगी ? तेरी राह तकेंगे ये रेतीले पाँव ||
मुमकिन है तेरे ख्वाबों में कोई और ही बसता हो जालिम
तेरे दर पे आते आते , हो गए हैं पथरीले पाँव ||
तेरे दिल में मेरी खातिर लाख नफरत है तो नफरत ही सही
फिर भी उम्मीद ये करता हूँ , एक दिन मेरे घर आयेंगे तेरे ये शर्मीले पाँव ||
एक मैं ही नहीं अकेला जहाँ में, दीवाने हजारों बैठे हैं
जब चलते हैं , क़यामत ढाते हैं , तेरे ये मस्त नशीले पाँव ||
जब झूम झूम कर चलती हो , लाखों की जान निकलती है
जाने कितनों को घायल कर जाते हैं ये कोमल -2 जोशीले पाँव ||
जब जोर- ए- जवानी होता है सबकी इज्ज़त होती है
जब हो जाओगी उम्रदराज़ तो पड़ जायेंगे ये ढीले पाँव ||
( यह ग़ज़ल मैंने बहुत साल पहले कहीं पढ़ी थी , अब आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ )
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