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वृक्ष

kahi ankahi
kahi ankahi
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हरे भरे ये वृक्ष हमारे
देते ठंडी ठंडी छांव |
सबको जरूरत रहती इनकी
नगर हो या हो गाँव ||


बसंत के प्यारे मौसम में
नई -नई पत्ती जब आती हैं |
थोड़ी सी ही जब चले पवन
झूम झूम ये लहराती हैं ||


आते हैं जब इन पर फल
इनकी डालें झुक जाती हैं |
ना करो तुम घमंड कभी
बिन बोले ये कह जाती हैं ||


वृक्ष सूखकर भी देखो
कितने काम हमारे आते हैं |
स्वयं जलकर आदमी को देते रोटी
परमार्थ का पाठ हमें पढ़ते हैं ||


( इस मंच की सम्मानित सदस्य आदरणीय तोशी जी और इस मंच पर उपस्थित सदस्यों के छोटे छोटे ,  प्यारे प्यारे बच्चों के लिए एक उपहार )

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