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खण्ड खण्ड होता लोकतंत्र

kahi ankahi
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लोकतंत्र की बात जब जब आती है मुझे दो महान लोगों का नाम याद आ जाता है ! पहला – अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जिन्होंने लोकतंत्र को परिभाषित किया और , दूसरा – बर्मा की आंग सान सू की का !

अब्राहम लिंकन ने कहा –

Government of the people, by the people, for the people

ऐसी ,व्यवस्था  जहां सामान्य लोगों द्वारा , सामान्य लोगों के  लिए , सामान्य लोगों के द्वारा चलायी जाने वाली सरकार हो ! मतलब , एक ऐसी व्यवस्था जिसमें हर कोई भागिदार हो !

अब बात करते हैं बर्मा की आंग सान सू की के विषय में ! नवम्बर 2010 में जेल से रिहा होने से पहले वो लगभग 20 साल अपनी जिंदगी के बर्मा की जेल में काट चुकी हैं ! उनका केवल एक ही ध्येय  था कि  बर्मा में सैनिक शाशन की जगह लोकतंत्र की स्थापना हो ! यानी सिर्फ लोकतंत्र के लिए इतना बड़ा फैसला ?

आप विश्व भर में पाएंगे कि  जहां लोकतंत्र नहीं है वहां के लोग लोकतंत्र ,  जिसे जन तंत्र भी कहा जाता है , अपने देश में स्थापित करने की मांग कर रहे हैं ! इसका सीधा सा मतलब बनता है कि  लोकतंत्र दुनिया की  सर्वश्रेष्ठ शाषण प्रणाली है !

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अगर भारत के सन्दर्भ में हम लोकतंत्र की बात करें तो पाएंगे कि  इसी सर्वश्रेष्ठ शाषण प्रणाली का हमने मज़ाक बना के रख दिया है ! जो प्रणाली हमारे लिए बहुत प्रभावी होती थी , उसी को हमने धीरे धीरे बेअसर और निष्प्रभावी कर दिया है ! असल में , हमारी एक नियति बन गयी है कि जो चीज़ हमें आसानी से मिल जाती है हम उसका महत्व नहीं समझ पाते , उसकी प्रासंगिकता नहीं मालूम होती ! अन्यथा जिस प्रणाली को स्थापित करने के लिए बहुत सारे देशों में क्रांतियाँ हुई हैं या हो रही हैं , उसी प्रणाली को हम इतना कम कैसे आंक  सकते हैं ? हमारी अयोग्यता कहें , अज्ञानता कहें या शिक्षा के अभाव में जागरूकता की कमी कहें , हमने लोकतंत्र के महत्व को कभी समझा ही नहीं ! आज लोक तंत्र को राज्यों से लेकर केंद्र तक में सिर्फ कुछ परिवारों तक सीमित कर दिया और आम आदमी यही समझने लगा है कि ये शाषण व्यवस्था सिर्फ कुछ लोगों के चुनाव लड़ने तक सीमित है ! दुःख तो तब होता है जब पढ़ा लिखा वर्ग भी इस बात को समझने की जरुरत महसूस नहीं करता और वो बस इतना कहकर कि मुझे राजनीती में interest नहीं है कहकर इस व्यवस्था का मज़ाक बना देता है , वो चुनाव जैसे महापर्व में हिस्सा लेना अपनी तौहीन समझता है और फिर अपने घर में इन नेताओं और इस व्यवस्था को गाली देता है ! इसी वज़ह से आज लोकतंत्र को कुछ परिवारों ने बंधक बना रखा है ! मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि जब भी क्रांतियाँ हुई हैं , आप विश्व का इतिहास उठाकर देख लें , कभी भी भरे पेट वालों ने क्रांतियाँ शुरू नहीं करीं ! क्रांतियाँ या आन्दोलन भूख से तड़पते लोगों ने शुरू करीं है , मजदूर और किसान के बेटों ने शुरू करीं हैं ! लेकिन हम अपना पेट भरकर ये सोच लेते हैं कि “all is well ” . इसी का परिणाम ये हो रहा है कि  भारत की राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश , तमिलनाडु , बिहार , हिमाचल प्रदेश जैसे देशों में तो लोकतंत्र की मूल परिभाषा और अब्राहम लिंकन के शब्दों को बिलकुल बदल कर रख दिया है यानी

Government of the people, by the people, for the people

को बदलकर

Government of the family , by the family , for the family
कर दिया है जो बिलकुल सटीक लगता है !


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लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद का आजकल जो हाल चल रहा है उसी से इस लेख को लिखने की प्रेरणा मिली है ! भारत के राज्यों की विधानसभाएं अपना महत्व पहले ही खो चुकी हैं ! जिन विधानसभाओं में जूतम पैजार होती हो , पोर्न फिल्में देखि जाती हों , वहां आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि  कुछ लाभकारी मिलेगा ! यही हाल हमारी संसद का न हो जाए इसके लिए आवश्यक है कि  हम इसकी गरिमा को बनाये रखें अन्यथा लोग भूल जायेंगे कि  संसद भी कोई महत्व रखती है ! हालाँकि वहां हाल में जो कुछ घटित हो रहा है वो अच्छा संकेत नहीं दे रहा है ! बिल फाड़ना या नारे बाज़ी करना , ये संसद की गरिमा को बढाने वाले कारक नहीं हो सकते ! लेकिन यही बात अगर एक आम आदमी कहता है तो वो संसद की गरिमा कम कर रहा होता है और अगर वो सांसदों की हकीकत बयान कर रहा होता है तो इसमें संसद का अपमान होता है !  मुझे नहीं पता कैसे ? हमारे माननीयों को समझना होगा कि  जो गलती आज वो जाने अनजाने कर रहे हैं वो कल नासूर बन जाएगी !

ये ज़ब्र भी देखा है तारिख की नज़रों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई  !!

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संसद जैसी मजबूत संस्था , मजबूर कैसे हो सकती है ? लेकिन हम यहाँ भूल जाते हैं कि अब वो संसद की बिल्डिंग तो है जो 1950 में संविधान के बाद अस्तित्व में आई होगी लेकिन वो सांसद नहीं दीखते ! अब हर कोई पार्टी लाइन पर बात करता है देश की लाइन पर नहीं ! संसद का इसी तरह से समय नष्ट होता रहा तो क्या अहमियत रह जाएगी इस लोकतंत्र के मंदिर की ? लेकिन जिन्हें ये समझना चाहिए वो न जाने क्यूँ ये समझना ही नहीं चाहते की आज वो जो कर रहे हैं कल उसका बहुत बुरा प्रभाव होने जा रहा है ! आप खुद इसे इस बात से समझ सकते हैं की विधानसभाओं के विषय में अब कोई क्यूँ नहीं बात करता ? क्यूंकि विधानसभा की शोभा बढाने वालों ने उन्हें एक ” ओपेरा हाउस ” बना दिया है ! दिल्ली में बैठे लोगों को ये बात समझनी होगी की कल को संसद का महत्व बना रहे इसके लिए उन्हें संसद की गरिमा का भी ख्याल रखना ही होगा अन्यथा इस मंदिर की कोई पूजा तो क्या खोज खबर  लेना भी छोड़ देगा !

असल में जब इतने बड़े मंदिर में जब येन केन प्रकारेण बस पहुँच जाना चाहता है तब वो इसके महत्त्व को कैसे समझेगा ? वहां ऐसे ऐसे लोग बैठे हैं जिन्हें आप अपने घर में जगह नहीं दे सकते और वो हमारे कर्णधार , हमारे नीति निर्माता बने बैठे हैं ! आप उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो इस मंदिर के महत्त्व को समझ पाएंगे ? संसद चलाने में जितना सहयोग पक्ष का होता है उतना ही विपक्ष का भी ! लेकिन इस सबको बेहतर तरीके से चलाने के लिए लोकसभा का अध्यक्ष या राज्य सभा का सभापति ही जिम्मेदार होता है ! लेकिन जब अध्यक्ष ही किसी दबाव में होगा , मंत्री ही उसे सदन को स्थगित करने की सलाह देने लगेंगे तो फिर उसकी मजबूरी को क्या कहा जाये ? मुझे याद आता है प्रथम लोकसभा अध्यक्क्ष श्री मावलंकर जी का एक वृतांत : नेहरु जी तब प्रधानमंत्री थे ! उन्होंने मावलंकर जी को एक चिट पहुंचवाई और कहा की मेरे केबिन में आइये , आपसे बात करनी है ! मावलंकर जी ने कहा – अध्यक्ष अपने केबिन से बाहर नहीं जाता , आप सुविधानुसार समय लेकर मुझसे मिलने आ सकते हैं ! तो ये होती है अपने पद की गरिमा ! वहां मावलंकर जी या नेहरु जी की बात नहीं थी वहां अलग अलग पद की गरिमा का विषय था ! आज के समय में क्या ऐसा संभव है ? असल में किसी संस्था या किसी पद की गरिमा तभी तक बनी रह सकती है जब उस पद पर या उस संस्था में उच्च चरित्र वाले लोग हों , अन्यथा उसकी गरिमा दिन प्रतिदिन कम होती चली जाएगी ! इसमें हम भी पूर्ण रूप से दोषी हैं ! क्यूंकि हम जैसे मूर्ख लोग दारू की एक बोतल या 1,000 हज़ार या 500 रुपये के लिए अपना वोट बेच देते हों , हम लोग भी तो ऐसे ही चुन का भेजेंगे जो सिर्फ और सिर्फ पैसे की ही कीमत जानता हो , सिर्फ पैसा गिनना जानता हो ! जिसे देश से कोई मतलब न हो , जिसे नीतियों से कोई मतलब न हो ! फिर हम कहेंगे की संसद ऐसी है की वैसी है !

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अब आरोप तो बहुत हो चुके , आलोचनाएं भी बहुत हो चुकी ! सार्थक क्या है ? उपाय क्या है ?
मित्रवर , कोई भी देश अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होता ! लेकिन उसमें निरंतर सुधार होता रहता है ! बस यही सुधार आवश्यक हैं ! संविधान में लिखी हर बात पत्थर की लकीर जैसी होती है लेकिन समय समय पर उसमें संशोधन भी किये जाते रहे हैं ! आज समय की जरुरत है की एक न्सिस्चित समय सीमा तय की जाए हर किसी सांसद के लिए की उसे इतना समय संसद में गुअजरना ही होगा , उसे तभी भत्ता मिल सकेगा ! और एक निम्न स्तर  तक आकर उसके अगले चुनाव में खड़े होने पर , या किसी भी तरह के चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगाई जाए ! हमारे मानिन्यों को ये समझना होगा की वो हमेशा के लिए इस कुर्सी पर नहीं बने रहेंगे , इसलिए संसद की गरिका और उसके महत्व के लिए जरुरी है की उसे ” fruitfull” यानी उपयोगी बनाया जाए ! हमें मिलकर आन्दोलन करना होगा जिससे लोग इस विषय पर अपने आप को जाग्रत कर सकें और संसद के महत्त्व को समझ सकें , अपने वोट और उसकी कीमत को समझ सकें ! आन्दोलन , क्रांति को जन्म देते हैं और वाही क्रांति समाज और देश को सही दिशायें देती हैं !

मैंने देखा है , लोग बाबा , महात्माओं के प्रवचन सुनने में लाखों की तादाद में इकठ्ठा होते हैं लेकिन संसद की गरिमा बचाने के लिए जितने आन्दोलन हो रहे हैं या होते रहे हैं उनमें संख्या कम होती है ! मैं इस बात के खिलाफ नहीं हूँ की बाबाओं के प्रवचन सुनाने क्यूँ जाते हैं , जाना चाहिए क्यूंकि वो एक अच्छा काम कर रहे हैं , धर्म और अध्यात्म की बात जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं किन्तु संसद हमारे देश का मंदिर है , उसकी प्रसगिकता , उसकी गरिमा , उसका महत्व तभी संभव है जब हम उसे जानें , उसे पहिचानें ! मित्रो , ये जीवन सिर्फ एक बार मिलता है ! यहीं आकर हम हिन्दू या मुसलमान बनते हैं , यहीं आकर हम ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य या शुद्र में विभाजित किये जाते हैं , किन्तु देश सबका एक है , संसद सबकी एक है ! आओ , लोकतंत्र के सही अर्थों को पहिचानें और अपना बेशकीमती वोट कभी 1,000 , 2,000 या दारू के भाव में न बेच डालें !
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चीमा साब की एक रचना के साथ अपनी बात ख़त्म करना चाहूँगा  !

ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गाँव के ,
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के .

पूछती है झोपडी और पूछते है खेत भी ,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के .

चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से ,
बेड़ियाँ खनका रहे है लोग मेरे गाँव के .

लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गाँव में ,

अब इक्कठा हो चले है लोग मेरे गाँव के .

देख यारा जो सुबह लगती है फीकी आजकल ,
लाल रंग उसमे भरेंगे लोग मेरे गाँव के .

ले मशाले चल पड़े है लोग मेरे गाँव के ,
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के .

जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना !

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