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अन्ना आन्दोलन : एक हसीन ख्वाब और उम्मीदों की मौत

kahi ankahi
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हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है

तब जाकर होता है चमन में दीदावर पैदा


यहाँ नर्गिस निश्चित रूप से हजारों साल तो नहीं रोई है किन्तु 65 वर्ष इंतज़ार जरुर किया है और ये इंतज़ार अभी ज़ारी है ! इस इंतज़ार को ख़त्म करने की एक पुरजोर कोशिश हुई अप्रैल 2011 में ! जी हाँ , मैं बात कर रहा हूँ लोकपाल की ! भारत की आज़ादी के इन 65 वर्षों में न जाने कितनी सरकारें आयीं और गयीं , कितने काबिल -नाकाबिल प्रधानमंत्रियों , मंत्रियों ने इस महान देश की महान संसद को शोभायमान किया किन्तु लोकपाल पारित नहीं हुआ ! वो ऐसी सुसुप्त अवस्था में पडा रहा जैसे इसका कोई अस्तित्व ही न हो ! इसी सुसुप्त अवस्था में पड़े लोकपाल को बाहर निकाला गांधीवादी और पदम् भूषण श्री अन्ना जी हजारे ने ! शुरुआत अप्रैल माह से हुई ! उसी दरम्यान अन्ना की टीम के अहम् सदस्य अरविन्द केजरीवाल और कुमार विश्वास हमारे कॉलेज में छात्रों और युवाओं का अहवाहन करने आये थे ! मैं लोकपाल से नहीं बल्कि अरविन्द के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ और कॉलेज से कम से कम 100 छात्रों को उनके आन्दोलन में भेजने का वायदा किया ! मैं अध्यापक जरुर था किन्तु मैं भी एक भारत वासी था , इसलिए मन मेरा भी नहीं माना और मैं भी उनके साथ इस आन्दोलन में शरीक होने निकल चला ! अप्रैल 2011 में हल्की फुल्की चिंगारी ने अगस्त 2011आते आते अपना रौद्र रूप दिखा दिया और केंद्र सरकार को उनके सामने घुटने टेकने पड़े ! बाद में क्या हुआ , सबको पता है !


आँखें तो पथरा गयीं तकते हुए उसकी राह
शामो सहर इंतज़ार देखिये कब तक रहे

मैं आज इसी बहाने उन चंद दिनों को याद कर लेना चाहता हूँ जिसने देश भर में देश भक्ति की लहर पैदा कर दी और अन्ना जन नायक हो गए ! 16 अगस्त 2011 ! मैं सुबह करीब 9 बजे ही गाजिआबाद से इंडिया गेट पहुँच गया था ! और भी लोग थे , लेकिन सब अकेले अकेले से ! मैं किसी को नहीं जानता था ! न ही कोई मुझे जानता था ! हाथ में झंडा था ! पुलिस की बहुत सारी गाड़ियां और बसें वहां खड़ी थीं ! करीब 10 बजे के आस पास 10-12 महिलाओं का एक जत्था उधर आ पहुंचा और सब बैठकर वन्दे मातरम , भारत मत की जय के साथ साथ ईश्वर अल्लाह तेरो नाम …..गाने लगे ! मैं भी उनमें शामिल हो गया ! ये संख्या लगतार बढती गयी और जब ये संख्या 100 के लगभग हो गयी तो तुरंत पुलिस ने हमें धर दबोचा और बस में बिठा दिया ! हम गाँधी के अनुयायी चुपचाप बस में बैठ गए ! नहीं मालूम था , कहाँ ले जायेंगे ! बस थोड़ी दूर चली होगी कि आगे रेड लाइट पर जाकर रुक गयी ! मैं पीछे की सीट पर बैठा था , तुरंत दरवाजे से कूद गया और रोड के दूसरी तरफ भाग लिया ! न मैंने मुड़कर देखा और न शायद कोई मेरे पीछे आया ! मैं वापस इंडिया गेट आ गया ! अब और भी लोग इकठ्ठा हो चले थे ! धीरे धीरे गर्मी अपना असर दिखा रही थी और उसके साथ ही लोगों की संख्या भी बढती जा रही थी ! मैंने या मेरी उम्र के लोगों ने कभी आज़ादी की लड़ाई नहीं देखी और न ही जेपी का आन्दोलन देखा ! हमने 16 अगस्त 2011 को जो देखा , वही शायद हमारे लिए आज़ादी की लड़ाई थी , शायद आज़ादी की दूसरी लड़ाई ! इंडिया गेट के हर रास्ते से लोग हाथों में तिरंगा लिए चले आ रहे थे ! युवा , महिलाएं , लड़कियां , बूढ़े ! छात्र , वकील …! मैं अभिभूत हो रहा था ! मन में उमंगें हिलोरें मार रही थीं ! मैं अपने आप को भगत सिंह की औलाद मान रहा था और उस वक्त कोई भी बलिदान देने को तैयार था ! लोग आ रहे थे , जा कोई नहीं रहा था ! दोपहर में हमें बहुत सारे बिस्कुट , फल और पानी मिल रहा था ! नहीं मालूम कि वो कौन लोग थे , नहीं मालूम कि वो क्यूँ दे रहे थे ! भूख नहीं थी , लग भी जाती तो सब कुछ हाज़िर सा लगता ! मैं बात बात पर लड़ने वाले हिन्दुस्तानियों का एक नया रूप देख रहा था और भगवान् से प्रार्थना कर रहा था काश ! हर जगह और हर रोज़ आम हिंदुस्तानी की यही मानसिकता बनी रहे ! पहले आप पहले आप !


सबब कुछ इस ख़ामोशी में है अपने ऐ ‘ज़फर’ वर्ना

जुबां मुंह में हमारे भी है हम भी बोल सकते है


शाम के 4 बजे के आस पास स्वीडन सहित एसोसिएटेड प्रेस के कई पत्रकार वहां जमा हो गए थे जिनसे पता चला कि इस आन्दोलन की गूँज देश में ही नहीं विदेशों में भी है ! मन की उमंगें ऐसी थीं की मैं उस वक्त ये भूल बैठा था की घर पर मेरे छोटे छोटे दो बच्चे मेरा , यानी अपने पापा का इंतज़ार कर रहे हैं ! एक पत्नी है , जो मेरे साथ ही खाना खाने के लिए बैठी होगी ! लेकिन शायद देश और ज़मीन की खुशबू ऐसी ही होती होगी कि अपना परिवार भुला देती होगी ! शाम के 6 बजते बजते पूरा इंडिया गेट पैक हो चुका था ! पाँव रखने की जगह नहीं थी ! अब पुलिस मजबूर थी और कुछ नहीं कर पा रही थी ! मुझे मेरे कुछ दोस्त कह रहे थे कि अन्ना सफल नहीं हो पायेगा ! मन में विश्वास था कि सफल होगा ! मैंने अपने आपको संभाला और देश पर परिवार को हावी करने की कोशिश करी और घर लौटने का विचार मन में आया लेकिन फिर पत्नी के आश्वासन के बाद मैं उस दिन आन्दोलनकारियों के साथ ही दिल्ली की सडकों पर वन्दे मातरम , भारत मत की जय चिल्लाता रहा !


17 अगस्त 2011 ! पूरी रात दिल्ली की सडकों पर गुजारने के बाद आखिर रामलीला मैदान पहुंचा ! इतनी भीड़ ! हे भगवान् ! अन्ना अनशन पर बैठ चुके थे ! लोग उन्हें देवता की तरह , बस एक दर्शन कर लेना चाहते थे ! टूट पड़ रहे थे ! उन्हें देखने मात्र के लिए ! ये शायद विश्वास ही था ! मुझे मेरे साथ के एक सज्जन मिले ! वो पानी की बोतल और पॉलिथीन इकठ्ठा कर रहे थे ! मैने पूछ लिया मित्रवर – इंजिनियर हो , ऐसा काम ! बोले यहाँ इंजिनियर नहीं हूँ ! बहुत काम है ! मुस्लिम थे ! ऐसी भावना ? वही होता रहा ! , वन्देमातरम ! भारत मत की जय ! जुलूस निकलता रहा ! कभी इंडिया गेट से रामलीला मैदान के चक्कर कभी रामलीला मैदान से इंडिया गेट ! थकान लग ही नहीं रही थी ! आखिर शाम होते होते वापस गाज़ियाबाद आ गया ! टेलिविज़न पर लगातार देख रहा था ! दिन गुजर रहे थे ! अन्ना सूख रहे थे ! आखिर अनशन टूटा और भरोसा मिला ! लेकिन भरोसा धोखा साबित हुआ !


इसी आन्दोलन में से कई चेहरे राजनीतिक रूप में सामने निकल कर आये ! जैसे घोंघा कवच में से निकल कर आता है ! अरविन्द केजरीवाल , मनीष शिशोदिया , गोपाल राय , कुमार विश्वास , संजय सिंह और किरण बेदी ! किरण बेदी ने अपना रास्ता नहीं बदल ! इसी टीम ने 2012 में जुलाई में अपनी शक्ति दिखाने की कोशिश करी लेकिन सफल नहीं हुए ! आखिर पार्टी बना ली !


अब आते हैं मुख्य बात पर ! क्या अरविन्द को राजनीतिक पार्टी बनाना जरुरी था ? हाँ ! क्यूंकि उन्हें राजनीतिक पार्टियों से ही धोखा मिला था लेकिन इसके साथ ही साथ अरविन्द ने एक सफल आन्दोलन का कचूमर भी निकाल दिया ! मैं अरविन्द का प्रशंशक भी हूँ और चाहता हूँ की वो एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनें लेकिन उन्होंने एक आगे बढ़ते आन्दोलन को तितर बितर करने में भी बड़ी भूमिका निभाई है ! यहाँ यह भी देखना होगा की सिर्फ अरविन्द ही इस सबके जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि अन्ना ने भी कहीं न कहीं अपने आप को बहुत बड़ा व्यक्तित्व साबित करने की कोशिश करी है जो उनमें पहले नहीं थी ! आज भी जब एक टीवी चैनल के विज्ञापन में अन्ना का अनशन दिखाया जाता है और एक बच्ची खाना खा रही होती तो वो हाथ रोक लेती है , दर्द होता है ! दर्द होता है कि क्यूँ ऐसा विश्वास घात किया गया ! दर्द होता है अन्ना जी ! दर्द होता है अरविन्द ! हमें शायद लोकपाल मिल भी जाता , अगर थोडा और कोशिश हो जाती ! लेकिन दुर्भाग्य इस देश का और हमारा कि हमें इंतज़ार ही करना पड़ रहा है ! पंचों उंगलियाँ अब अलग अलग हो गयी हैं ! अपनी ढपली अपना राग ! न अन्ना इतने ताकत वर रहे और न ही उनकी कोई टीम ! शायद हमें एक और अन्ना का इंतज़ार करना पड़े ! एक बात जरुर निकल कर आती है की राजनीती , कोई आसन काम नहीं ! और राजनीती सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है और कोई नहीं ! कांग्रेस के हुक्मरानों ने कैसे धोखा देकर अन्ना के आन्दोलन को न केवल धार रहित कर दिया बल्कि एक तरह से उसे मौत की नींद सुला दिया ! शायद और कोई अन्ना आये , लेकिन न तो ये बहुत जल्द संभव होगा और न ही कोई संभावना बनती दीख रही है !


अपनी बात को मजरुह सुल्तानपुरी के एक नायाब शे’र के साथ ख़त्म करूँगा !

कहीं ताकत के पंजे में कलाई बदनसीबों की
कहीं दौलत की बाहों में बहु- बेटी गरीबों की
कोई ज़ालिम है कोई बेसहारा देखते जाओ
जहां वालो इसे कहते हैं दुनिया देखते जाओ !!


जय हिंद ! जय हिन्द की सेना

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