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बदलते भारत में मुस्लिम युवाओं की भूमिका

kahi ankahi
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दुनिया के सबसे अधिक मुस्लिमों की संख्या में इंडोनेशिया के बाद दूसरे स्थान पर आने वाले भारत में मुस्लिम लोगों की और विशेषकर युवाओं की क्या भूमिका हो सकती है और क्या भूमिका रही है इस पर गौर करें ! सन 1947 के विभाजन से पहले और उसके बाद में भारत में मुसलामानों की स्थति में बहुत ज्यादा कुछ परिवर्तन आया है ऐसा मुझे नहीं लगता ! लेकिन इधर 1990 के दशक के बाद अवश्य ही एक सुखद बदलाव देखने को मिल रहा है ! भारत में अधिकांश समय और क्षेत्रों में मुसलामानों को सिर्फ अपना वोट समझा गया है ! कभी किसी पार्टी विशेष को मुसलामानों का दुश्मन घोषित करके अपना उल्लू सीधा करा गया है और कभी अपना वोट बचाने के लिए या बढाने के लिए उनको भड़काया गया है ! इस देश के कर्णधारों को ये गुमान है कि मुस्लिम धर्मभीरु होता है और उसे धर्म के नाम पर भड़काना बहुत आसान होता है ! इसलिए जब जब पार्टियों को मुसलामानों का वोट चाहिए होता है तो वो सिर्फ उनके मज़हब की बात करती हैं ! ऐसे में विकास पीछे छूट जाता है ! किसी पार्टी विशेष को सांप्रदायिक बताकर , अपने अवगुण और अपनी अक्षमता और अपनी करतूतों को छुपा लिया जाता है ! यही कारण है कि आज भी भारत का मुसलमान उस विकास का हकदार नहीं बन पाया है जिसका उसे अधिकार था ! ” ये एक सर्वविदित और सर्वमान्य सत्य है कि अगर आदमी को अपना गुलाम बनाए रखना है तो उसे पढने मत दो ! उसे बढ़ने मत दो ! उसे जाहिल बना रहने दो ” ! और यही सब भारत में चल रहा है ! क्यूंकि अगर एक व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करता है तो वो अपने स्तर से कुछ ऊपर उठकर समाज और दुनिया को देखने लगता है ! वो औरों के साथ चलने की कोशिश करता है ! इसलिए अगर उसका वोट चाहिए तो उसे पढने मत दो , उसे आगे मत बढ़ने दो ! यही कुछ कठमुल्लों की बात है ! अपने आप को सर्वशक्तिमान बनाए रखने और अपना दबदबा बनाये रखने के लिए हर बात में खुदा का खौफ दिखाना और एक निरीह को मज़हब के नाम पर डराए रखना ही जैसे इनका शगल हो गया है ! फतवों से डराना एक फैशन बन गया है ! लेकिन इन फतवों का अब कितना महत्त्व रह गया है ये अपने आप में एक चर्चा का विषय है ! मुझे लगता है फतवे न तो पढ़े लिखे इंसान को समझ आते हैं और न ही वो इन्हें समझने और मानने की कोशिश करता है ! जो एलीट वर्ग हैं उन्हें इनसे कोई मतलब ही नहीं होता ! तो फिर ये फतवे किसके लिए ? फतवे ज़ारी करने चाहिए लेकिन समाज की भलाई के लिए , मुल्क की तरक्की के लिए !


तुम पेट पे लात मार चुके अब कितने पाँव पसारोगे
तुम रोटी कपड़ा क्यूँ दोगे , तुम लोग कफ़न भी उतारोगे

ये बाज़ी भूख की बाज़ी है , ये बाज़ी तुम ही हारोगे
हर घर से भूखा निकलेगा , तुम कितने भूखे मारोगे ?


हम सबने देखा है कि अधिकाँश फिल्मों में या अखबारों में ज्यादातर आतंकवादी मुस्लिम ही होते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं हो जाता है कि हर मुस्लिम आतंकवादी ही होगा ! मुस्लिम भी एक इंसान हैं और उन्हें भी आम इंसानों की तरह अपनी जिंदगी जीने का हक है ! कोई मुस्लिम नहीं चाहेगा कि उसका बेटा आतंकवादी बने और मानवता का दुश्मन बनकर उसके परिवार और देश की इज्जत पर दाग लगाए ! लेकिन जिनका ये धंधा है वो ऐसे गरीब और अनपढ़ लोगों की ताक में बैठे रहते हैं जिन्हें धर्म के नाम पर बरगलाया जा सके और आतंक के घिनोने और कष्टकारक संसार में धकेल जा सके ! लेकिन 100 फ़ीसदी ऐसा नहीं है कि सिर्फ अनपढ़ ही आतंकवादी बनते हैं , कभी कभी पढ़े लिखे भी कभी जिहाद के नाम पर तो कभी मज़हब के नाम पर इस अंधे कुँए में छलांग लगा देते हैं !


वक्त बहुत बड़ा मरहम होता है ! भारत के स्वर्ग कश्मीर में जो कुछ पिछले दशक में हुआ है उसे कौन भूल सकता है ! शायद वो आतंकवाद की पराकाष्ठ रही है ! अगर कश्मीर में वहां के पंडितों ने अपना घर और अपनी संपत्ति को छोड़ा है तो वहां के मुसलमानों ने भी अपनी जान गंवाई है ! क्यूंकि आतंकवादी आतंक फैलाना चाहते थे ! वो लाश हिन्दू की हो या मुसलमानों की ! इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता आतंक के आकाओं को ! भारत के स्वर्ग जैसे सुन्दर कश्मीर की खुशहाली जो देखते ही बनती थी उसे इतनी जल्दी लौटाया तो नहीं जा सकता लेकिन एक रास्ता बनता दीख रहा है ! वहां के लोग अब इस बात से आजिज़ आ चुके हैं और वो अपना पुराना खुशहाल कश्मीर देखना चाहते हैं ! यही बात आतंक के सौदागरों को रास नहीं आ रही है और अब वो दुखी हैं कि कैसे अपने आप को इस धंधे में बनाये रखा जाये ? बदलते कश्मीर का एक नमूना शाह आलम जैसे लोग प्रस्तुत कर रहे हैं जो भारतीय सिविल सेवा में प्रथम स्थान पा रहे हैं ! ये बदलता चेहरा है भारतीय मुसलमान का ! स्वागत है ! परवेज़ रसूल जैसा कश्मीरी जब क्रिकेट के मैदान पर विकेट चटकाकर हिन्द की ज़मीन को चूमता है तो सच में अच्छा लगता है !


मेरे लिए इतना काफी है की
मैं अपनी सरज़मीं पर मौत देखूं
और यहीं दफ़न हूँ
और इस मिटटी में पिघल कर फैल जाऊं
फिर फूल की तरह ज़मीन से बाहर निकलूं
मेरे देश के बच्चे इसके साथ खेलें
मेरे लिए इतना ही काफी है
की मैं अपने वतन की गोद में रहूँ
इस तरह जैसे मुट्ठी भर गर्द
बहार की घास की तरह
एक फूल की मानिंद !!


लेकिन केवल कुछ चेहरे ही भारत के मुसलामानों की तकदीर और तस्वीर बयान नहीं कर सकते हैं ! भारत के मुसलामानों को ये समझना होगा की रिक्शा चलाने या खराद मशीन चलाने से ही उनका भविष्य उज्जवल नहीं हो जाएगा ! ये खुदा की देन है कि मुस्लिम युवाओं को हाथ का कारीगर समझा जाता है ! लेकिन इससे भी आगे की दुनिया है ! ये देखकर अच्छा लगता है कि मुस्लिम युवा अब IT और BPO तक में अपनी पहुँच बना रहे हैं ! मैं जिस क्षेत्र में हूँ वहां अब मुस्लिम लडको और लड़कियों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई में देखकर मन प्रसन्न होता है कि अब भारत बदल रहा है ! क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है अपनी गरीबी हटाने का ! सरकारों को भी धन्यवाद कि वो गरीब तबके को स्कोलरशिप दे रही हैं और गरीब बच्चों को दुनिया की होड़ में आने के लिए प्रेरित कर रही हैं ! मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसा सोचता हूँ कि भारत का भविष्य उज्जवल है और भारत में रहने वाले अधिकांश मुस्लिम अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं ! मैं जानता हूँ इस विषय पर विस्तृत लिखा जा सकता है और बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन और बातें फिर कभी !


चाह रखने वाले मंजिलों को ताकते नहीं

बढ़ कर थाम लिया करते हैं …….

जिनके हाथों में हो वक्त की कलम

अपनी किस्मत वो खुद लिखा करते हैं !!


जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना

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