हर बार की तरह इस बार भी 15 अगस्त मन गया , हो गया , मना लिया ! मना लेते हैं जैसे तैसे , कैसे भी ! मनाना ही तो होता है ! मना लेते हैं ! 1947 से आज तक मनाते आ रहे हैं , आज भी मना लिया , आगे भी मनाएंगे ! हम आज़ाद हुए थे इस दिन ! मुझे नहीं मालूम कि आज़ाद हुए थे कि नहीं ! गोरे अंग्रेजों से आजाद हुए थे , लेकिन काले अंग्रेजों से ? शायद उनके गुलाम हुए थे ! एक गुलामी से छूटे और दूसरी गुलामी में जा अटके ! आसमान से अटके खजूर में नहीं , शायद नागफनी या शायद आग में गिर गए !
नेहरु जी से लेकर मनमोहन सिंह जी तक एक ही रवायत , अपनी अपनी सरकारों की उपलब्धि का बखान ! गरीबी मिटा देने का रोना , मिटती कभी नहीं ! आज तक नहीं मिटी ! मिट जायेगी तो वोट कौन देगा ? वैसे ही इतनी इज्ज़त खराब हो चुकी है कि अगर अब गरीबी मिटा दी तो वोट भी नहीं मिल सकेगा ! हिन्दू मुस्लिम थोड़े थोड़े समझदार हो रहे हैं , अब दंगा कम करते हैं , फिर वोट कैसे मिले ? इसके लिए जरुरी है कि वोट के कीड़ों , कीटाणुओं को हिंदुस्तान के वातावरण में रहने दिया जाए , गरीबी जिन्दा है तो वोट जिन्दा है ! गरीबी गयी तो वोट छूमंतर ! इसलिए कोई बेवकूफ ही होगा जो गरीबी हटाएगा , सच में हटाएगा ! 66 साल हो गए गरीबी हटते हटते ! हटाते हटाते ! जय हो गरीबी की ! अगर गरीबी न होती तो वोट न होता , वोट न होता तो नेता न होता , नेता न होता तो घोटाला न होता , घोटाला न होता तो लोकतंत्र मजबूत कैसे होता , लोकतंत्र मजबूत न होता तो पांचवी पास नेता , २० वाँ स्थान प्राप्त करने वाली महिला आई , ए. एस अधिकारी को सस्पेंड कैसे कराता ? सोचने की बात है !
सोचने की बात चली तो सोचा कि मैं भी सोच लूं ! हालाँकि सोचने के लिए दिमाग को खुला होना चाहिए जो मुझे नहीं लगता कि किसी के पास छोड़ा है हमने ! ज्यादा लिखने का सोचोगे तो आज़म खान पकडवा लेगा ! एक गीत याद आ रहा है जो हमेशा 15 अगस्त या 26 जनवरी को ही बजाया जाता है !
हम लाये हैं इस कश्ती को तूफ़ान से निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
बच्चे तो संभाल के तभी रखेंगे जब तुम इसे छोड़ जाओगे संभालने लायक ? तुम तूफ़ान से निकाल लाये हो लेकिन अब ये कीचड में फंस गया है , बहुत मुश्किल हो रहा है कीचड में से निकाल कर लाना ! हालाँकि तूफ़ान से भी तुम नहीं निकाल कर लाये थे , जो निकालकर लाये थे वो गुमनाम हो गए हैं , उनकी मूर्तियाँ धुल खा रही हैं या फिर अपने लिए , खड़े होने के लिए जगह की तलाश कर रही हैं ! कुछ ऐसी हैं जिनको चेहरा दे पान मुश्किल है , नाम देना भी मुश्किल है ! कभी कभी तो लगता है एक ही परिवार ने सारी लड़ाई लड़ी होगी ! उसके या उसके लोगों के चेहरे हर जगह नज़र आते हैं तो लगता ही नहीं कि कोई और भी वीर इस देश में , इस जमीन पर पैदा हुआ होगा ? भगत सिंह तक को शहीद मानने से इनकार है ! इनकार क्यूँ न हो ? इस देश को आजाद कराने का ठेका सिर्फ एक ही परिवार को मिला था , आज भी मिला है गुलामी में रखने का ! फिर कौन आज़ाद हुआ ? कैसे आजाद हुआ ? कब आज़ाद हुआ ? जिनका कोई नाम तक न था आज़ादी में उनकी जिन्दा होते हुए भी मुर्तोयों पर फूल और बिजलियाँ चमकती हैं लेकिन जिन्होंने सर्वस्व निछावर कर दिया उनकी कब्रों और चिताओं पर माफिया डोरे डाले बैठे हैं ! सोचिये , अगर सोच सकें तो ! वैसे मुझे नहीं लगता आप सोच पायेंगे ! मेरे शब्द कहते हैं :
चलो इन उसूलों को कूड़े में डाल दें इस मुल्क में सोच गुलाम है आजकल ॥
हुकूमत से कोई उम्मीद लगाना छोड़ दो चोरों के हाथ में मुल्क का निजाम है आजकल ॥
मन दुखी हो जाता है जब शहीदों की इतनी बेकद्री होती है ! वो हमसे ज्यादा नहीं चाहते , बस इतना सा कि अगर उनकी मूर्ति पर माला नहीं डाल सकते तो कम से कम ****** भी मत करो !
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