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उज्जवल भविष्य है हिंदी ब्लॉगिंग के लिए ( “नव परिवर्तनों के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग”) contest

kahi ankahi
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हिंदी की जब भी बात आती है , हमने उसके लिए रोने को एक दिन न जाने क्यूँ तय कर लिया है ! जैसे बड़े बड़े और महान लोगों का मरण दिन और श्रधांजलि देने का जो प्रचलन है कुछ उसी तरह हमने हिंदी को हर साल १४ सितम्बर को श्रधांजलि देने का कार्यक्रम बना रखा है ! मुझे नहीं मालुम लोग हिंदी के लिए क्यूँ इतना रोना रोते हैं ? मुझे सच कहूँ तो ये रोना हिंदी के लिए और भी खतरनाक लगता है ! हिंदी के अखबार हिंदी के विषय में लिखेंगे , स्कूल और कोलिज में प्रतियोगिताएं होंगी , सरकारी कार्यालयों में कार्यक्रम और चर्चाएं आयोजित होंगे ! ये धीरे धीरे हिंदी को मरणासन्न कर रहे हैं !


अब कुछ हिंदी ब्लॉग्गिंग की बात करें ! मात भाषा वो होती है जिसमें आप सोचते हैं , जिसमें आप बात करना पसंद करते हैं , जिसको आप बोलना पसंद करते हैं ! मुझे बताएं आप , आप कितने इंग्लिश ब्लॉग पढ़ते हैं ? और अगर पढ़ते हैं तो कितने ब्लॉग लेखकों के नाम याद हैं आपको जिनके अंग्रेजी के ब्लॉग पढ़े हैं आपने और कितना लगाव है आपको उनसे ? ब्लॉग पढना अलग बात है लेकिन उनसे कुछ सीख पाना , उनसे जुड़ पाना अलग बात ! हम ब्लॉग लिखते हैं तो अपने मन और अपने आत्मा की पुकार को परिभाषित करते हैं शब्दों में ! और क्यूंकि हमारी आत्मा और हमारा मन हिंदी में ही रचा बसा है इसलिए उन शब्दों को ग्रहण भी कर लेते हैं ! ये शब्द अगर हमें नयी जानकारियाँ उपलब्ध कराते हैं तो साथ ही साथ दिल में उतरते भी हैं ! आप दिल पर हाथ रख कर बताएं , क्या आपने कभी अंग्रेजी रचना पढ़ते हुए अपने आपको भाव विभोर महसूस किया है ? क्या आप खुलकर हंस पाए हैं , क्या कोई गंभीर रचना पढ़ते हुए आपकी आँखें गीली हुई हैं , नहीं न ! हम अंग्रेजी आर्टिकल को केवल ख़त्म करना चाहते हैं , पढना चाहते हैं किन्तु उससे जुड़ नहीं पाते ! लेकिन जब हम हिंदी ब्लॉग पढ़ते हैं , अपने आपको उससे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं ! हसी की बात पर हँसते हैं , गंभीर बात पर गंभीर होते हैं ! मतलब अगर एक लाइन में कहूँ तो जहां अंग्रेजी ब्लॉग या अंग्रजी आर्टिकल पढने के दौरान आपका चेहरा भावहीन रहता है जबकि हिंदी या अपनी मात भाषा के ब्लॉग पढने का समय आपका चेहरा हर वो बात कहता है जो आप समझ रहे हैं , जो आप पढ़ रहे हैं ! जो आप महसूस कर रहे हैं !


हिंदी ब्लॉग पढने वाले और लिखने वाले शायद अपने आपको कमतर समझते हैं ! जबकि हकीकत कुछ अलग भी है ! जागरण जंक्शन के अलावा नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर जाकर देखें तो पता चलता है एक अच्छी खासी भीड़ हैं पढने वालों की भी और लिखने वालों की भी ! जागरण जंक्शन भी एक ऐसी ब्लॉग साईट है जो हर रोज़ नए नए आयाम स्थापित कर रही है ! अगर कुछ तकनीकी खामियों को दरकिनार कर दें तो एक बहुत सशक्त माध्यम है जागरण जंक्शन , अपने शब्दों , अपनी सोच , अपने उसूलों और अपने लिखने के हुनर को दुनिया के लोगों तक पहुंचाने का ! अगर मुझ जैसे हल्के फुल्के लेखक को मेरे किसी ब्लॉग पर 7 ,000 पढने वाले मिल जाते हैं तो मैं कैसे कह दूं कि हिंदी ब्लॉग्गिंग को कोई नहीं पूछता , कैसे कह दूं कि हिंदी ब्लॉग पढने वाले लोग नहीं हैं ? ब्लागस्पाट पर , देखिये एक से एक महान ब्लॉगर ऐसा है जिसको एक महीने में 40,000 हिट आराम से मिल जाते हैं ! जिनमें ऐसा भी देखा गया है कि बाहर के देशों के लोग भी हिट करते हैं ! भले ही वो विदेशी न हों शायद भारतीय हों किन्तु उनका भाषा के प्रति लगाव तो दीखता ही है ! फिर कैसे कहें कि हिंदी ब्लॉग कोई नहीं पढता ! हिंदी के लिए हल्ला मचाने वाले क्यूँ भूल जाते हैं कि इस देश में और भी भाषाएँ जिन्दा हैं लेकिन हिंदी फिर भी 85 करोड़ लोगों तक अपनी पहुँच बना रही है ! हिंदी में एक कहावत है ” घर की मुर्गी दाल बराबर ” ! शायद यही कहावत चरितार्थ करना चाहते हैं इस देश के लोग ! मुझे हिंदी ब्लॉग्गिंग का भविष्य बहुत उज्जवल नज़र आता है ! अभी हिंदुस्तान में केवल 17 प्रतिशत लोगों के पास इन्टरनेट की पहुँच है जिनमें से केवल 42 प्रतिशत हिन्ढी भाषी हैं ! उस दिन के विषय में सोचिये जिस दिन भारत के हर गाँव और हर घर में इन्टरनेट होगा , तब हिंदी ब्लॉग्गिंग अपने सुनहरे दौर में होगी ! तब इस पीड़ा को बाहर निकाल फेंकने का समय होगा कि हम हिंदी वाले हैं !


अगर हम हिंदी ब्लॉग्गिंग और अंग्रेजी ब्लॉग्गिंग की बात करें , तुलना करें तो आप पायेंगे कि अंग्रेजी में लिखने के लिए केवल दो ही विधा आपके पास हैं गध और पद्ध ! यानी आर्टिकल होगा या पोएम होगी ! लेकिन हिंदी में आप कई विधाओं में लिख पाते हैं , गध लिखिए , पद्ध लिखिए ! उसी में आप ग़ज़ल लिखिए , कविता लिखिए , सवैया लिखिए , हाइकू लिखिए ! कहानी लिखिए , लेख लिखिए , लघु कथा लिखिए ! संस्मरण लिखिए , यात्रा वर्णन लिखिए ! बहुत कुछ है लिखने को और पढने को ! हमरी ब्रज भाषा में एक कथन है ” घर कौ जोगी जोगना आन गाँव कौ सिद्ध “! यानी घर में कोई कितना भी विद्वान हो उसे भाव नहीं देते लेकिन बाहर का कोई ऐसा वैसा भी हो उसे सिद्ध यानी विद्वान मान लिया जाता है ! शायद अंग्रेजी की हिमायात करने वाले ऐसी ही कुछ मानसिकता के लगते हैं ! मुझे तो हिंदी ब्लोगिंग भविष्य के आईने में बहुत सुनहरी , उज्जवल और फलती फूलती , कुलांचें मारती नज़र आती है ! मैथली शरण गुप्त जी के शब्दों के साथ अपनी बात को विराम देता हूँ :


तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मैं?


तेरी विभव कल्पना कर के,
उसके वर्णन से मन भर के,
भूल रहे हैं जन बाहर के
कैसे तुझे भुलाऊं मैं?
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?


जय हिन्द ! जय हिन्दी !

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