“आप” के बहाने ही सही ………राजनीतिक समालोचना (कांटेस्ट)
kahi ankahi
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लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कितनी ही खामियां हों या रही हों , लेकिन फिर भी मुझे लगता है ये शासन की सर्व्श्रेस्थ प्रणाली है ! बहुत से लोग भारत में रहकर भारत की शासन प्रणाली को हेय दृष्टि से देखते हैं ! वो लोग भूल जाते हैं कि इसी प्रणाली की बदौलत किसान पुत्र श्री लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं और इसी प्रणाली के माध्यम से , भले ही सीधे नहीं , रामेश्वरम के एक गाओं से पैदा होकर वैज्ञानिक बनते हुए डॉ कलाम राष्ट्रपति भवन की सीढ़ियां चढ़ सके हैं ! हर व्यवस्था में कोई न कोई खामी होती है , व्यवस्था में ही क्यों , हर चीज में कोई न कोई खामी होती है लेकिन उन खामियों को लगातार सुधारा जाना भी एक प्रक्रिया है ! भारत के पड़ोस में देखिये तो , वो जिन्हें भारतीय लोकतंत्र में खामियां ही खामियां नजर आती हैं , उनकी आँखें खुल जाएंगी ! पाकिस्तान में आज़ादी के इतने सालों बाद पहली बार 2013 में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत सरकार का बदलाव हुआ है ! बंगला देश में लोकतंत्र को मजाक बनाकर रख दिया है वहाँ की दोनों प्रमुख पार्टियों ने ! नेपाल में लोकतंत्र अपने बाल्यकाल में ही दम तोड़ देने को मजबूर दीखता है ! भूटान में लोकतंत्र आँखें खोल रहा है लेकिन आज भी वहाँ का लोकतंत्र राजशाही के चंगुल से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा है ! चीन में लोकतंत्र की कोई कली भी नहीं खिलती और श्रीलंका का लोकतंत्र एक दिखावा मात्र है ! तो इतने बेहतर लोकतंत्र को अगर कोई सड़ी गली व्यवस्था कहता है तो लाजमी है कि उससे ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि वो इससे बेहतर किस व्यवस्था की बात कर रहा है ?
पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो लोकतंत्र है , उसका अध्ययन करने के लिए पैर बढ़ाएंगे तो आपको लगेगा इससे बदतर कुछ नहीं हो सकता ! पाकिस्तान में न विपक्ष का नेता सत्ता पक्ष से बात करता है न कोई सलाह लेता है , यही हाल बंगला देश में भी है ! जहां कई वर्षों से , अपने अपने हितों और अपने अपने अहम की वजहों से दौनों विपक्षी पार्टियों की नेता आपस में कभी बात नहीं करतीं , चाहे देश में कितना भी संकट क्यूँ न आ जाए ! अगर भारत की बात करें तो ऐसा कभी नहीं रहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष ने कभी भी इस तरह का बर्ताव किया हो , राजनीती अपनी जगह है लेकिन देश हित सबसे पहले ! इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपायी तक , जब भी देश पर कोई , आपस में मिल बैठकर हल निकला है ! ये लोकतंत्र का एक बहुत सुदृढ़ और सुन्दर पहलु है ! भारत की मुख्य राजनीतिक पार्टियों का उद्देश्य और क्रियाकलाप भी इस तरह के नहीं रहे हैं कि नेताओं के व्यक्तिगत सम्बन्ध निम्नस्तर तक पहुँच गए हों ! राजनीतिक मतभेद होना और व्यक्तिगत मनभेद होनादोनों अलग अलग बातें हैं ! ये भारतीय लोकतंत्र की खूबी हैं ! भारतीय लोकतंत्र की खूबी ये भी हैं कि नरेंद्र मोदी के मंच पर जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दिखाई देते हैं तो ये सन्देश जरुर जाता है कि हम भारत के लोग भले ही राजनीतिक रूप से अलग परिपाटी के हों लेकिन हमारा मकसद सिर्फ एक है और वो है भारत की आन बान और शान को बनाये रखना ! मुझे ये परिपाटी हमेशा आकर्षित करती है !
हालाँकि ऐसा नहीं है कि सब कुछ अच्छा ही होता है या होता रहा है लोकतंत्र के नाम पर ! लेकिन ऐसा हमेशा होता आया है कि हर चीज में कोई न कोई एक छेद जरुर निकलेगा ही ! कुछ तिकड़मबाज , अपनी तिकड़मों के तिरपाल तानकर हर जगह बैठे होते हैं , तो यहाँ , इस प्रणाली में भी मिलेंगे ही ! लेकिन इसके साथ ही एक सम्भावना इस प्रणाली को मजबूत करने की भी बनी ही रहती है ! जापानी भाषा में एक शब्द होता है कैज़ेन ( KAIZEN) जिसके अनुसार हर चीज में निरंतर सुधार करने से उसकी गुणवत्ता में सुधार आता है ! यही कुछ लोकतंत्र के साथ भी है कि निरंतर और स्टेप बाई स्टेप हम एक बेहतर प्रणाली जो पहले से ही मौजूद है , को और ज्यादा पारदर्शी और मजबूत बनाएं !
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान
भारत में 2013 के शुरू में अरविन्द केजरीवाल ने ‘आप ” के माध्यम से निश्चित रूप से एक नयी बहस को जन्म दिया है ! हम अरविन्द के चाहे कितने भी बड़े विरोधी हों लेकिन हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उनकी वजह से ही आज राजनीती में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा को एक पहिचान मिल रही है ! जिस तरह से आज विकास और स्वच्छ और बेहतर शासन का पर्याय नरेंद्र मोदी हैं उसी तरह ईमानदारी की पहिचान अरविन्द भी बन रहे हैं ! नरेंद्र मोदी या अरविन्द केजरीवाल अपने मकसद में कितने कामयाब होते हैं या ये कहा जाए जनता उनकी नीतियों का और उनका कितना समर्थन करती है ये एक अलग विषय हो सकता है लेकिन इस बात में कोई दोराय नहीं है किजाति और धर्मों में बँटी भारतीय राजनीती को इन दौनों ने विकास और ईमानदारी की परिपाटी पर ला खड़ा किया है ! राजनीती में इन दौनों विशेषताओं पर बात होने लगी है , बल्कि ये विषय centralize भी हो गए हैं ! ईमानदारी के पुरोधाओं को एक नाम और सम्मान मिल रहा है ! सबको समझ आ रहा है कि अगर अपनी दूकान चलानी है या चलाये रखनी है तो नए जमाने के हिसाब से बदलना पड़ेगा ही अन्यथा मात खा जायेंगे ! इस बात में कोई शक नहीं कि ईमानदारी और विकास के पुरोधाओं को विशेष स्थान मिल रहा है अन्यथाआज तक ईमानदारी की मिसालें कायम कर चुके डॉ हर्षवर्धन , गोआ के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर या त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार को कौनभाव देता था ! “आप ” के बहाने ही सही लेकिन अब राजनीती में सफाई का काम शुरू तो हो ही चूका है , हो सकता है इसमें बहुत समय लगे किन्तु एक आवाज तो निकली है ये बहुत सार्थक और स्पष्ट सन्देश है भातरीय राजनीती के उन पुरोधाओं के लिए जिन्हें लगता था कि राजनीती कभी नहीं बदलेगी !
आखिर में , बस इतना कहना चाहूंगा कि नेता कोई मंगल गृह से नहीं आते हैं , ये हमारे बीच में से ही निकलतेहैं इसलिए सबसे पहले और सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारी बनती है कि हम अपने विवेक और समझ का पूरा उपयोग करते हुए पोलिंग बूथ पर जाकर अपने मत का प्रयोग करें , हमारे वोट से न केवल सरकार बनती है , बल्कि संसद भी बनती है और हमारे वोट से ही मजबूत लोकतंत्र बनता है ! हमारी राजनीतिक समझ हमें अलग अलग कर सकती है लेकिन हम सबका ध्येय मात्र एक होना चाहिए -मजबूत लोकतंत्र और मजबूत और साफ़ सुथरी सरकार !
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